ख़ामोश नज़रों से चुपके चुपके
जो कर रहा है सलाम प्यारे।
वो हौले हौले उतर के दिल में
बना रहा है मुक़ाम प्यारे।।
अभी मुहब्बत जवां नहीं है
अभी तो रुसवाईयों का डर है
अभी वो नादां अयां न कर दे
तमाम महफ़िल में नाम प्यारे।।
ख़ामोश नज़रों से चुपके चुपके....
ज़हां को यूँ भी पसंद कब था
जवानियों का मलंग होना
जवां दिलों को पसंद कब है
किसी का रहना गुलाम प्यारे।।
ख़ामोश नज़रों से चुपके चुपके....
न मर रहा हूँ न जी रहा हूँ
पता है इतना कि पी रहा हूँ
लबो से उसकी छलक रहे हैं
नज़र के प्यालों में जाम प्यारे।।
ख़ामोश नज़रों से चुपके चुपके....
सुरेश साहनी अदीब
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