ये माना कि कोई मुरव्वत न दोगे।

हमें ग़ैर समझोगे अज़मत न दोगे।।

ये सौदागरी है भला किस किसम की 

मुहब्बत के बदले मुहब्बत न दोगे।।

तुम्हें दिल दिया है मुकर क्यों रहे हो

बयाना उठाया था बैयत न दोगे।।

तुम्हें चाहिए सिर्फ दौलत की दुनिया

मेरे जैसे मुफ़लिस को सिंगत न दोगे।।

कोई मर भी जाये तुम्हारी बला से

बिना कुछ मिले कोई राहत न दोगे।।

हमें भी तुम्हारी ज़रूरत नहीं है

हमें जिंदगी भर की दौलत न दोगे।।

करें क्या मुहब्बत का ओढ़ें- बिछाएं

फ़क़त दिल ही दोगे नियामत न दोगे।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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