तुम्हे मतलब है केवल व्याकरण से।

मैं लिखता हूँ मगर अंतःकरण से।।


कोई जागा तो क्यों जागा ये जानो

शिकायत है तुम्हे गर जागरण से।।


कोई जीये-मरे अपनी बला से

तुम्हे कब फर्क है जीवन-मरण से।।


शोहरत में बुरी आदत से बचना

पतित रावण हुआ सीता हरण से।।


उसे उतना ही ऊँचा ओहदा है

गिरा जितना जो अपने आचरण से।।


वो दिल से गोडसे लादेन है लेकिन

बना फिरता है गांधी आवरण से।।

सुरेशसाहनी

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