जीते जी मत मरने लगना।
हमसे प्यार न करने लगना।।
दुनियादारी के दलदल में
अपने पाँव न धरने लगना।।
आगे नाथ न पीछे पगहा
उनको मत अनुसरने लगना।।
नज़रों को काबू में रखना
नज़रों से मत गिरने लगना।।
साकी की क़ातिल नज़रों से
शीशे में न उतरने लगना।।
उस हरजाई की आदत है
कहना और मुकरने लगना।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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