हमारे दरमियान कुछ तो है।
जमीन ओ आसमान कुछ तो है।।
अपने हक़ में कोई खड़ा तो हैं
बाज़ुबाँ बेज़ुबान कुछ तो है।।
तवारीखों में हम मिलें न मिलें
हाँ मग़र दास्तान कुछ तो है।।
हम हैं गर्दिश में मान लेते हैं
आपका एहसान कुछ तो है।।
अपनी क़िस्मत में कुछ बबूल सही
धूप में सायबान कुछ तो है।।
सुरेशसाहनी
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