इक आपसे मुहब्बत कितनी बड़ी ख़ता है।

खोजें कहाँ पे ख़ुद को इक दिल भी लापता है।।

वो दुआयें दे रहे हैं सौ साल तक जियें हम

छोटी सी इस ख़ता की कितनी बड़ी सज़ा है।।

उनके बग़ैर जीना इसे यूँ समझ ले कोई

कभी उनमें मरने वाला मर मर के जी रहा है ।।

सुरेश साहनी कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है