एक गीत आपके समीक्षार्थ

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मन आया तुमको प्रिय लिख दें

डर लगा तुम्हें अप्रिय न लगे।।

मेरी प्रशस्तियों में तुमको

अभ्यर्थन का आशय न लगे।।.....


तुम प्रिय हो लेकिन प्रिया नहीं

जब नेह निमन्त्रण लिया नहीं

इससे बेहतर जी सकती थी

तुमने वह जीवन जिया नहीं।।


मैं यही सोच कर मौन रहा

सुनकर तुमको विस्मय न लगे।।.....


मैं प्रेमी हूँ वासना शून्य

मैं साधक हूँ कामना शून्य

परिव्राजक हूँ पर दीन नहीं

भिक्षुक हूँ पर याचना शून्य


फिर भी इक डर सा बना रहा

अनुराग वासनामय न लगे।।....


है प्रेम किन्तु आसक्ति नहीं

मैं काया कामी व्यक्ति नहीं

तुम लगे मुझे चित निर्विकार

यह प्रयोजनिय अभिव्यक्ति नहीं


सोचा तुमको अद्वितीय कहें

पर लगा तुम्हें अतिशय न लगेI।.....


मैं अटल प्रेम का साधक हूँ

मैं अमर प्रेम का बन्धक हूँ

मैं व्यष्टि सृष्टि का गायक हूँ

अपनी समष्टि का नायक हूँ


तुम पर यूँ बन्ध नहीं डाले

प्रस्ताव तुम्हें अनुनय न लगे।।......


सुरेशसाहनी, कानपुर

Photo courtesy- Jagdish Narayan

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