यूँ मुझे टूटकर न चाह सनम।
कुछ ज़माने से भी निबाह सनम।।
इश्क़ का हश्र सबको है मालूम
वक़्त होता है बदनिगाह सनम।।
कुछ बसाये भी हैं मुहब्बत ने
घर जियादा हुए तबाह सनम।।
लुत्फ इसमें है दो घड़ी लेकिन
उम्र भर के लिए है आह सनम।।
फिर ये बन्दा भी वो मुसाफ़िर है
साथ जिसके कठिन है राह सनम।।
सिर्फ़ और सिर्फ़ तुझसे प्यार करूँ
मुझसे होगा न ये गुनाह सनम।।
यूँ भी मैं धूप का परिंदा हूँ
मेरी किस्मत नहीं है छाँह सनम।।
सुरेश साहनी , कानपुर
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