कुछ भी कहकर मुकरने लगे हो।
तुम किसे प्यार करने लगे हो।।
साथ जीने को हमने कहा था
फिर कहाँ जाके मरने लगे हो।।
आईने ने बताया है हमको
कुछ ज़ियादा संवरने लगे हो।।
तुम नज़र में रहो बेहतर है
क्यों नज़र से उतरने लगे हो।।
खुद को हम भी कहाँ तक सम्हालें
तुम भी हद से गुजरने लगे हो।।
क्या तुम्हारी छवि को सम्हालें
तुम तो खुद से बिखरने लगे हो।।
हो न हो कुछ बदल तो रहा है
तुम दिनोदिन निखरने लगे हो।।
सुरेशसाहनी
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