साथ हमारे चल सकते हो।
ख़ुद को अगर बदल सकते हो।।
या तफरीहतलब हो केवल
थोड़ा साथ टहल सकते हो।।
तिशना लब हैं हम मुद्दत से
क्या शीशे में ढल सकते हो।।
फूलों जैसे नाज़ुक हो तुम
क्या काँटों में पल सकते हो।।
क्यों ऐसा लगता है तुमको
तुम सब कुछ हल कर सकते हो।।
सब्र बड़ी नेमत है प्यारे
गिरते हुए सम्हल सकते हो।।
गिरगिट जैसे गुण हैं तुममे
आगे बहुत निकल सकते हो।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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