तुम कहो हम और कबतक यूँ ही दीवाना फिरें।
बेसरोसामां रहें हम बेदरोदाना फिरें।।
दूर से ही कब तलक देखें उरूज़े-हुस्न को
ऐ शमा हम किसकी ख़ातिर बन के परवाना फिरें।।
तुम तो रुसवाई के डर से छुप के परदे में रहो
और हम सारे शहर में बन के अफसाना फिरें।।
तुम बनो अगियार ऐवानों की रौनक़ और हम
अपनी गलियों में गदाई हो के बेगाना फिरें।।
तेरी ज़ुल्फ़ों के फतह होने तलक है ज़िन्दगी
यूँ न हो हम लेके तेग-ओ-दिल शहीदाना फिरें।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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