हम न बदले ज़माना बदलता रहा।
हम वहीँ रह गए वक्त चलता रहा।।
जब बहारों ने हमसे किनारा किया
तब नियति ने किसे क्या इशारा किया
मन भ्रमर बेखबर सा मचलता रहा।।
हुस्न की बदगुमानी बढ़ी इस कदर
इश्क़ होता रहा बेतरह बेक़दर
इश्क़ बढ़ता रहा हुस्न ढलता रहा।।
शम्मा जलती रही अपनी रौ रात भर
सो गया कोई जागा कोई रात भर
मोम बनकर वो पत्थर पिघलता रहा।।
दोष दें क्या तुम्हें जब नियति ने छला
शुभ घड़ी कितने पल तब ठहरती भला
चाँद बदली में छिपता निकलता रहा।।
रात मधु यामिनी की सरकती रही
लोक लज्जा मिलन को तरसती रही
शुभ मुहूरत न जाने क्यों टलता रहा।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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