एही रहिया हो,गईलें ललनवा हमार।

साथे रहली जी, जनक दुलारी सुकुमार।।

एही रहिया हो...

 हेनिये से हमरा ललन चलि गईलें

सियाजी आ रामलखन चलि गईलें

लागतारे दूनो नयन चलि गईलें

चलि गईलें हो हमरे परान अधार।।

एही रहिया हो.......

सुरेशसाहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है