इक टूटा फूटा ख़्वाब दिया।
जब उसने एक गुलाब दिया।।
हमने फिर भी उम्मीदें की
तुमने तो साफ ज़वाब दिया।।
लोगों में खूब सवाल उठे
हमने ही हँस कर दाब दिया।।
ये दर्द तुम्हारी नेमत है
तोहफा कितना नायाब दिया।।
हमने भी तुमसे कब पूछा
तुमने भी खूब हिसाब दिया।।
बढ़ती जाती है प्यास मेरी
जलवों का नाम शराब दिया।।
हमने तुमको महबूब कहा
तुम बोले नाम ख़राब दिया।।
अपनी नज़रों में गिर बैठे
तुमने जो आज खिताब दिया।।
सुरेश साहनी कानपुर
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