उस का सुमिरन भूल न जाना
कुछ भी सुनना और सुनाना
काम कलुष में ऐसा लिपटा काया हुयी कामरी काली
अब चादर क्या धुल पायेगी घड़ी आ गयी जाने वाली
बिगड़ा तन का तानाबाना।।
कई हक़ीक़त दफ़्न हो गए एक कहानी के चक्कर में
बचपन से आ गया बुढ़ापा रहा जवानी के चक्कर में
अब क्या खोना अब क्या पाना।।
मूलाधार चक्र से लेकर सहस्त्रार तक जा सकता था
मानव जन्म लिया था इसमें मैं भी प्रभु को पा सकता था
ज्ञानी होकर रहा अजाना।।
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