बरसों मेरी तलाश में खोया रहा हूँ मैं।
बरसों मेरी ही याद में डूबा रहा हूँ मैं।।
बरसों मेरा मिजाज़ मेरे शौक गुम रहे
बरसों तेरे वजूद को जीता रहा हूँ मैं।।
पीने को एक ज़ाम उठाया तो उठ लिए
वो जिनकी महफ़िलों को सजाता रहा हूँ मैं।।
ये आख़िरी गुनाह नहीं है मेरा मग़र
क्यों मग़फ़िरत की चाह लिए जा रहा हूँ मैं।।
बाक़ी बहुत है ज़िन्दगी के मरहले अभी
शम्अ -ए-सुखन जलाओ अभी गा रहा हूँ मैं।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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