लोग चेहरे की धूल देखेंगे।
क्या सफ़र के उसूल देखेंगे।।
देन कांटों की कौन समझेगा
देखने वाले फूल देखेंगे।।
हम नमाज़ी हैं या के पाज़ी हैं
सब खुदा के रसूल देखेंगे।।
अपनी निस्बत है नूर से उसके
क्या किसी को फ़िज़ूल देखेंगे।।
याद रखना है नफ़्से-आख़िर तक
कैसे जाते हो भूल देखेंगे।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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