ख़ुद को तलाशते हुए खोना पड़ा हमें।

अक्सर खुशी के वास्ते रोना पड़ा हमें।।


बरसों बरस सलीब चढ़ाए गए हैं हम

अपना सलीब बारहा ढोना पड़ा हमें।।


फिर ज़िंदगी भी क्या किसी तकिए से कम रही

तनहा तमाम उम्र ही सोना पड़ा हमें।।


अक्सर कि जिसके हाथ बिखेरे गए सुरेश

उसके लिए ही ख़ुद को पिरोना पड़ा हमें।।


गुम हो गए कभी कहीं होते हुए भी हम

अक्सर कहीं न होके भी होना पड़ा हमें।।


सुरेश साहनी कानपुर

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