जिससे सच की बू आती हो

जो इक उम्मीद जगाती हो

जिससे सरकारे हिलती हो

वह जिसमें बागी तेवर हो


सरकार समझती है जिसमें

आवाज उठाने का दम है

वह कविता नही रियाया के

हाथों में इक टाइमबम है


सरकारें ऐसी कविता पर

बैन लगाती आयी हैं

सरकारें ऐसे कवि को

बागी ठहराती आयी हैं


जनता को ऐसा लगता है

जनता सरकार बनाती है

पर सरकारों को मालुम है

जनता सरकार नहीं होती


सुरेशसाहनी, अदीब,कानपुर

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