नीतीश कुमार जी निषादों को एसटी का दर्जा देने की सिफारिश करते हैं वे बधाई के पात्र हैं,पर अति पिछड़ावर्ग सम्मेलन में बुलाते हैं तब भ्रम होता है।समाजवादी पार्टी पहले से अनुसूचित जाति की सूची में शामिल निषाद उपजातियों मंझवार ,तुरैहा,बेलदार और खरवार को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने की बात करती है।बीजेपी फिशरमैन सेल बनाती है।कांग्रेस फिशरमैन कांग्रेस। निषाद खुद को श्रृंगी ऋषि और वेदव्यास की संतान बताते हैं तो हरियाणा के कश्यप खुद को कश्यप ऋषि की संतान और राजपूत क्षत्रिय कहते हैं।
पूर्वी उत्तरप्रदेश के निषाद खुद को दलित मानने में शरमाते है। वे कहते हैं कि हम अश्वमेध यज्ञ धारी राजा राम के सखा महाराज गुह्य के वंशज हैं।अभी एक निषाद स्त्री को सामूहिक दुराचार के बाद पूरे गांव में नग्न करके घुमाया गया।
वहां से बीजेपी की केंद्रीय मंत्री भी हैं।श्रीराम के वंशज मुख्यमंत्री भी हैं।श्रीराम जी ने अपने बगल का आसन दिया था।इन्होंने दरवाजे के पास स्टूल दे दिया है।
यही नहीं गुजरात मे भी इस समाज के सबसे बड़े नेता पुरुषोत्तम सिंह सोलंकी सात बार जितने के बाद राज्यमंत्री ही बन पाए हैं।
निषाद और उनकी उपजातियां उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार में आश्वासनों का झूला झूल रहीं हैं।निषाद युवा अशिक्षा , उच्च शिक्षा में अवरोध और बेरोजगारी के दंश झेल रहे हैं।मुसलमानों के बाद निषाद समाज और उसकी उपजातियां उत्तर भारतीय कारागारों में बंद हैं।
समाज के नेता भी युवाओं को उनके उज्वल भविष्य के लिए जागरूक करने की बजाय राजनैतिक रैलियों में इस्तेमाल करना अधिक श्रेयस्कर समझते हैं।सबसे बड़ी विडम्बना यह कि समाज के युवाओं को राष्ट्रीय विकास की मुख्यधारा में लाने की बजाय यह नेता उनको जातीय घृणा सिखा रहे हैं।
आज स्थिति यह है कि निषाद और उसकी उपजातियों के नेता छोटे छोटे पदों के एवज में भिन्न भिन्न दलों के पास जाकर पूरे समाज को बेचने को तैयार खड़े हैं।
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