मेरी कविताओ को
देखे हुए
एक अरसा हो गया
आखिर देखता भी कौन
और कविताएँ भी
धूल गरदा फाँक फाँक कर
दमा की मरीज हो गयी हैं।
क्या तुम उन्हें सुनोगे?
शायद नहीं
लोग तो सांस के मरीज
बाप को भी
नहीं सुनते हैं।
हम क्या है?हुंह
सुरेशसाहनी,कानपुर
मेरी कविताओ को
देखे हुए
एक अरसा हो गया
आखिर देखता भी कौन
और कविताएँ भी
धूल गरदा फाँक फाँक कर
दमा की मरीज हो गयी हैं।
क्या तुम उन्हें सुनोगे?
शायद नहीं
लोग तो सांस के मरीज
बाप को भी
नहीं सुनते हैं।
हम क्या है?हुंह
सुरेशसाहनी,कानपुर
Comments
Post a Comment