बारिश में भीगा अखबार पढा मैंने
थोड़ी तकलीफ़ हुई
पर खबरें भी सूखी सूखी
कहाँ मिलती हैं
अक्सर सामान्य घटनाये
चटपटी बनाकर छाप दी जाती हैं
जिन्हें पढ़ते हैं लोग
चटखारे लेकर
झूठ में पगी,खून से सनी
दहशत भरी या आंसुओं से भीगी
खबरें सूखी नहीं होतीं
सच कहें !
आज के दौर में जब
आंख का पानी भर चुका है
जब अखबार अपनी स्याही के लिए
धनकुबेरों के मोहताज हों
तब अखबार भले सूखे मिलें
खबरें झूठ से
सराबोर ही मिलेंगी।।
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