इस शहर में हूँ उन्हें मालुम है।
हर नज़र में हूँ उन्हें मालुम है।।
मेरी रुसवाई नई बात नहीं
मैं ख़बर में हूँ उन्हें मालुम है।।
लाख नज़रें वो चुराए उनके
चश्मेतर में हूँ उन्हें मालुम है।।
हुस्न ढलने से डरेगा क्योंकर
मैं सहर में हूँ उन्हें मालुम है।।
ज़ीस्त ठहरी थी उन्हीं की ख़ातिर
अब सफ़र में हूँ उन्हें मालुम है।।
मैं मकीं हूँ ये भरम था मुझको
अब डगर में हूँ उन्हें मालुम है।।
बेबहर लाख हो गज़लें मेरी
मैं बहर में हूँ उन्हें मालुम हैं।।
सुरेश साहनी कानपुर
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