देवता और जनता

सब जुटे थे   

मंथन में निकला हलाहल

अब जनता पी रही है 

लापता हैं शिव

कोई विकल्प भी नहीं

पुनः मंथन होगा

किंचित इस बार निकल आये

अमृत कलश

तब विकल्प बहुत हैं।

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