यार तुम्हारा जाना भी दुख देता है।
याद तुम्हारा आना भी दुख देता है।।
मैं पारे सा बिखरा सिमटा करता है
यूँ मन का भटकाना भी दुख देता है।।
प्यार किसी का खोना दुख की बात तो है
प्यार किसी का पाना भी दुख देता है।।
पहले ख़्वाब तुम्हारे खुश कर देते थे
अब ख़्वाबों का आना भी दुख देता है।।
डर तो लगता है अनजानी बातों से
पर जाना पहचाना भी दुख देता है।।
तुम अपने थे जो दिल मे पैबस्त हुए
अपनों का चुभ जाना भी दुख देता है।।
तुमने ग़म की दौलत दी एहसान किया
क्या धन और खज़ाना भी दुख देता है।।
हम तो तेरे कारण जान न दे पाए
यूँ दुश्मन का जाना भी दुख देता है।।
आये हो तकिए पर साथ रक़ीबों के
कुफ्रन आग लगाना भी दुख देता है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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