लेती नहीं दवाई अम्मा, जोड़े पाई-पाई अम्मा । दुःख थे पर्वत, राई अम्मा हारी नहीं लड़ाई अम्मा । इस दुनियां में सब मैले हैं किस दुनियां से आई अम्मा । दुनिया के सब रिश्ते ठंडे गरमागर्म रजाई अम्मा । जब भी कोई रिश्ता उधड़े करती है तुरपाई अम्मा । बाबू जी तनख़ा लाये बस लेकिन बरक़त लाई अम्मा। बाबूजी थे छड़ी बेंत की माखन और मलाई अम्मा। बाबूजी के पाँव दबा कर सब तीरथ हो आई अम्मा। नाम सभी हैं गुड़ से मीठे मां जी, मैया, माई, अम्मा। सभी साड़ियाँ छीज गई थीं मगर नहीं कह पाई अम्मा। अम्मा में से थोड़ी - थोड़ी सबने रोज़ चुराई अम्मा । घर में चूल्हे मत बाँटो रे देती रही दुहाई अम्मा । बाबूजी बीमार पड़े जब साथ-साथ मुरझाई अम्मा । रोती है लेकिन छुप-छुप कर बड़े सब्र की जाई अम्मा । लड़ते-लड़ते, सहते-सहते, रह गई एक तिहाई अम्मा। बेटी की ससुराल रहे खुश सब ज़ेवर दे आई अम्मा। अम्मा से घर, घर लगता है घर में घुली, समाई अम्मा । बेटे की कुर्सी है ऊँची, पर उसकी ऊँचाई अम्मा । दर्द बड़ा हो या छोटा हो याद हमेशा आई अम्मा। घर के शगुन सभी अम्मा से, है घर की शहनाई अम्मा । सभी पराये हो जाते हैं, होती नहीं पराई अम्मा । --अज्ञात
र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है तुम श्लील कहो, अश्लील कहो चाहो तो खुलकर गाली दो ! तुम भले मुझे कवि मत मानो मत वाह-वाह की ताली दो ! पर मैं तो अपने मालिक से हर बार यही वर माँगूँगा- तुम गोरी दो या काली दो भगवान मुझे इक साली दो ! सीधी दो, नखरों वाली दो साधारण या कि निराली दो, चाहे बबूल की टहनी दो चाहे चंपे की डाली दो। पर मुझे जन्म देने वाले यह माँग नहीं ठुकरा देना- असली दो, चाहे जाली दो भगवान मुझे एक साली दो। वह यौवन भी क्या यौवन है जिसमें मुख पर लाली न हुई, अलकें घूँघरवाली न हुईं आँखें रस की प्याली न हुईं। वह जीवन भी क्या जीवन है जिसमें मनुष्य जीजा न बना, वह जीजा भी क्या जीजा है जिसके छोटी साली न हुई। तुम खा लो भले प्लेटों में लेकिन थाली की और बात, तुम रहो फेंकते भरे दाँव लेकिन खाली की और बात। तुम मटके पर मटके पी लो लेकिन प्याली का और मजा, पत्नी को हरदम रखो साथ, लेकिन साली की और बात। पत्नी केवल अर्द्धांगिन है साली सर्वांगिण होती है, पत्नी तो रोती ही रहती साली बिखेरती मोती है। साला भी गहरे मे...
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