तीन दिन से सोच रहा हूं कुछ लिखूं1। लेकिन घूम फिर के दो पंक्ति से आगे की स्थिति ही नहीं बनती। घूम फिर के दिमाग में वहीं कचरा। नया कुछ मिलता ही नहीं। सोचते हैं कि कुछ ब्रेकिंग न्यूज टाइप धमाकेदार लिखें।ससुरा मिलता ही नहीं।
कई बार तो ऐसा लगता है कि साहित्य के हाट में भी आर्थिक मंदी जैसी साहित्यिक मंदी छाई हुई है।आप यकीन नहीं मानेंगे मेरे सैकड़ों जानने वालों के कविता संग्रह , कहानी संग्रह या अन्य किताबें आईं पर मजाल जो साहित्य के हाट में कोई हलचल मची हो। हाट इसलिए कह रहा हूं कि हिंदी साहित्य की स्थिति मार्केट वाली अभी तक तो नहीं बनी है।मार्केट या साहित्य का बाजार आज भी अंग्रेजी के कब्जे में हैं। और नोबेल से लेकर बुकर तक यही स्थिति है।चाहे इतिहास उठाकर देख लीजिए। गीतांजलि को भी सम्मान तभी मिला था, जब वह अंग्रेजी में छपी। नहीं तो मुंशी प्रेमचन्द और मंटो की हर कहानी नोबल प्राइज के लायक है। पर उनको नोबल पुरस्कार के छींटे भी नहीं मिले।
फिर यह सोचकर मन को समझाने की कोशिश करते हैं कि यार ऐसी मंदी तो टीआरपी बाजार में भी छाई है। नहीं तो मलाइका अरोड़ा की शादी की खबर दिन भर ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर नहीं चलाई जाती।
लेकिन लेखन में बड़ा संकट यही है कि यहां अंतरात्मा की आवाज पर लिखना होता है। फिर इस उम्र में प्यार वार पर भी झूठ मूठ कहां तक लिखें।इधर हम उनकी आंखों में सागर लिखें और उधर वो कहें कि मेरी आंख में जाला पड़ गया है वो नहीं दिखाई देता। महीना भर से कह रहे हैं डॉक्टर के यहां ले चलो। ये नहीं सुनाई देता। जुल्फों में घटा देखें तो घरैतिन कहेगी कि यहां बिना बरसात के पूरा जुलाई बीता जा रहा है। घमौरियां निकलने की स्थिति बन आई है और तुम्हें घटा दिखाई दे रही है। सुधर जाओ वरना कबीर की तरह तुमको भी घाट नहीं नसीब होगा।
खैर अब इतना तो समझ में आने लगा है कि अनपढ़ कबीर लिखने की बजाय बार बार पढ़ने को क्यों बोलते थे । उन्होंने लिखा भी कि "ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।'
क्योंकि वे जानते थे पूरे समुद्र की स्याही बना कर लिखें तब भी अभीष्ट लेखन संभव नहीं। ऐसे में ब्रेकिंग लाइन बनना तो बहुत दूर की बात है।
और अगर किस्मत साथ दे जाए तो नूपुर शर्मा बनते देर नहीं लगती।अब तुलसी बाबा को देखिए। लोग गुरु पूर्णिमा पर गुरु की महिमा पर सोशल मीडिया पर लिख लिख अघा गए।परंतु ब्रेकिंग पंच नहीं मिला। जो तुलसी बाबा लिख गए हैं।उदाहरणार्थ:-
बंदऊ गुरु पद पदुम परागा।। जैसी एक अर्धाली ही बहुत है । जो कि मेरी नजर में गुरु महिमा पर सबसे सुंदर रचना लगती है।
और शायद संत कबीर मेरे आगे आने वाली इस साहित्यिक मंदी से भली भांति परिचित थे।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
Comments
Post a Comment