कभी कभी नहीं लिखने के लिए भी लिखना चाहिए।एक बहुत बड़े वाले ग़ज़लगो (जैसा कि उन्होंने बताया था) कि जनाब अपना मोबाइल नम्बर भेजिए। मैने उन्हें अपना नम्बर दे दिया। कुछ दिन बाद उन्होंने बताया कि एक साझा दीवान लाने की बात हुई है उसमें मुल्क के नामी गिरामी शायर और कवि शामिल हैं।मैने आपकी गजलें देखी हैं। माशाअल्लाह बेहद उम्दा हैं। हम चाहते हैं कि आप भी इसमें शिरकत करें तो बहुत अच्छा लगेगा। 

  वैसे सही मायने में देखा जाए तो ये कवि या शायर वाली  प्रजाति बहुत भोली होती है। लोग हल्की सी तारीफ़ कर दें तो ये क्या ना लुटा दें। कुछ बेवकूफ भी होते हैं जिनमें मेरा नाम आसानी से लिखा जा सकता है। और आप किसी भी कवि या शायर की अहलिया से पूछ कर इस बात की तसदीक कर सकते हैं। आप दुनिया भर के बुद्धिमत्ता और सम्मान के सर्टिफिकेट ले आइए, घर में सब बराबर।हमारे कवि मित्र कोकिल कंठी हैं । उनकी घरैतिन अपनी सहेली से बता रही थीं," अरे बहिन! क्या बताएं हमारे ये जिंदगी में हुशियार नहीं हो पाएंगे। चाय समोसा पर कविता पढ़ि आते हैं। जाने कब अकल आएगी।

और अपनी स्थिति भी कवि मित्र से अलग कहां होती।उनकी तारीफ़ की शिद्दत से मुझे भी  लगा कि मैं अब किसी मायने में गालिब के चच्चा से कम नहीं।फिर भी एहतियात तो रखना था।

   सो मैने पूछा कि मुझे क्या करना होगा। उन्होंने बताया कुछ नहीं बस आप अपनी दस बारह ग़ज़लें भेज दें और अपने हिस्से के सात हजार रुपए भी ।

 मैने कहा कि इतना तो नहीं हो पाएगा। 

दो दिन बाद उन्होंने कहा कि देखिए मैने प्रकाशक जी से बात की है वो आपके लिए पांच हजार में मान गए हैं। और वक्त बहुत कम है।आप आज ही पैसे भेज दीजिए। 

मैने कहा ठीक है आज शुक्रवार है। सोमवार को बैंक जाकर देखता हूं। 

उन्होंने कहा पेटीएम कर दीजिए। मैने असमर्थता जाहिर की। बस उनका पारा चढ़ गया।उन्होंने कहा कि इतना वक्त तो वे राहत मामू को भी नहीं देते। इसके बाद उधर से खामोशी छा गई।

  कुछ दिनों बाद उनका फोन आया कि अभी दीवान निकालने का कार्यक्रम टाल दिया है क्योंकि मजलूम झांझवी साहब के बेटे की शादी है। अभी उनका साप्ताहिक हाहाकार टाइम्स निकलता है।अगर आप दो हजार भेज दें तो हम आपको उसमें छाप देंगे। आपकी कलर फोटू भी छप जायेगी। आप के नीचे कालम में साहिर साहब को भी छाप रहे हैं। और हमारा अखबार सीएम मद्रास भी पढ़ते हैं।

मैने इस बार फिर असमर्थता जाहिर कर दी। लेकिन उन्होंने सब्र नहीं खोया। बहुत प्यार से बोले कि मैं चाहता था कि आप का नाम शायरी शायरी की दुनिया में छा जाए। पर आप समझते नहीं हैं। मेरे रिसाले में छप छप के लोग मुंबई में बड़े गीतकार हो गए। खुद मजरूह साहब उनसे मुतास्सिर रहे हैं।अब आखिरी बार कह रहा हूं ,आप केवल एक हजार रुपए भेज दीजिए। अगले महीने आप भी मशहूर शायरों की फेहरिस्त में शुमार हो चुके होंगे।वरना आप जैसे लाखों शायर हमारे आगे पीछे घूमते हैं। 

  और आप यकीन नहीं मानेंगे इसके बाद हमारे बहुत सारे काबिल दोस्त उनके रिसाले में चस्पा नज़र आए। यह अलग बात है कि उनके रिसाले की हार्ड कॉपी किसी दोस्त को मयस्सर नहीं हो पाई।

सुरेश साहनी, कानपुर

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