आज की रात सो न पाएंगे।

आज बस तुमको गुनगुनायेंगे।।


आज की रात ज़ीस्त की ख़ातिर

मौत के दर से लौट आएंगे।।


आज की रात की सहर है क्या

रात बीतेगी तब बताएंगे।।


शेख जन्नत तुझे मुबारक हो

मयकदे से तो हम न जाएंगे।।


मौत तुझको भी  एक दिन देंगे

हम तुझे भी गले लगाएंगे।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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