कुछ हवाओं में ज़हर है कुछ फ़िज़ाओं में ज़हर।
किस क़दर फैला हुआ है दस दिशाओं में ज़हर।।
सिर्फ धरती ही नहीं अब आसमां भी ज़द में है
चाँद तारों में ज़हर है कहकशाँओं में ज़हर।।
इस क़दर से आदमी की सोच ज़हरीली है अब
प्रार्थनाओं में ज़हर है अब दुआओं में ज़हर ।।
एक अच्छा आदमी उसके ज़ेहन से मर गया
आदमी ने भर लिया जब भावनाओं में ज़हर।।
वो बहारों के लबादे में ज़हर फैला गया
लोग गाफ़िल कह रहे हैं है खिज़ाओं में ज़हर।।
सुरेश साहनी कानपुर
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