ग़ज़ल

ग़ज़ल कह रहा हूँ इसी जिंदगी पर।
कोई हैफ है मेरी संजीदगी पर ।।
कहाँ काम आता वो सजना संवरना
कोई मर मिटा जब मेरी सादगी पर।।
दुआ कर कि बरसे शराबों के बादल
करम कर दे साक़ी मेरी तिश्नगी पर।।
कंवल जैसे तुम हो भ्रमर मेरा मन है
कोई शक है क्या मेरी आवारगी पर।।
शबनम की बूंदों से लबरेज गुल तुम
कोई शेर कह दूँ तेरी ताज़गी पर।।
                                --सुरेश साहनी

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