माँ
ठिठुरन भूख अलाव तुम्हारी छाती है।
माँ तेरा एहसास हमारी थाती है।।
इस सर्दी में धूप तुम्हारा आँचल है
माँ तू कितने रूप बदल कर आती है।।
दिन भर दुनियादारी जैसे जाड़े में
रात रजाई बन कर लोरी गाती है।।
तेरी ममता कम्बल में ढक लेती है
जब पाले की रात गलन बढ़ जाती है।।
जब भी कोहरे राह में मेरी छाते हैं
तेरी दुआ ही मंज़िल तक पहुँचाती है।।
माँ तेरा एहसास हमारी थाती है।।
इस सर्दी में धूप तुम्हारा आँचल है
माँ तू कितने रूप बदल कर आती है।।
दिन भर दुनियादारी जैसे जाड़े में
रात रजाई बन कर लोरी गाती है।।
तेरी ममता कम्बल में ढक लेती है
जब पाले की रात गलन बढ़ जाती है।।
जब भी कोहरे राह में मेरी छाते हैं
तेरी दुआ ही मंज़िल तक पहुँचाती है।।
Comments
Post a Comment