ग़ज़ल

चाँद बहुत आवारा है।
कहते हैं बंजारा है।।
घटता बढ़ता रहता है
शायद ग़म का मारा है।।
उसने किससे प्यार किया
सब कहते हैं प्यारा है।।
अक्सर डूबा करता है
आखिर किससे हारा है।।
दिल तोड़े भी जोड़े भी
लेकिन कब स्वीकारा है।।
कुछ वो है मशरूफ बहुत
कुछ हम भी नाकारा हैं।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है