माना कि आदमी नहीं हम जानवर सही
क्या जानवर के साथ भी जायज़ है ये सुलूक।।
हम पांचवे दर्जे के नागरिक हैं किसलिए
किससे हुयी ये गलतियाँ किसने करी है चूक।।
तुम महलों में रहकर भी महफूज़ नहीं
झोपड़ियों का अपना कौन सहारा है।।
उस पर भी तुम जीत सको इसकी ख़ातिर
झोपड़ियों ने अपना सब कुछ हारा है।।
स्मृतियों का विस्मृत होना बहुत कठिन है
पर उसके प्रभाव कमतर होते जाते हैं।।
नित नवीनता हमको यूँ बहला लेती है
और सहज खोते पाते बढ़ते जाते हैं।।
क्या जानवर के साथ भी जायज़ है ये सुलूक।।
हम पांचवे दर्जे के नागरिक हैं किसलिए
किससे हुयी ये गलतियाँ किसने करी है चूक।।
तुम महलों में रहकर भी महफूज़ नहीं
झोपड़ियों का अपना कौन सहारा है।।
उस पर भी तुम जीत सको इसकी ख़ातिर
झोपड़ियों ने अपना सब कुछ हारा है।।
स्मृतियों का विस्मृत होना बहुत कठिन है
पर उसके प्रभाव कमतर होते जाते हैं।।
नित नवीनता हमको यूँ बहला लेती है
और सहज खोते पाते बढ़ते जाते हैं।।
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