ग़ज़ल
हमें फुर्सत कहाँ थी आज़माते ।
तुम्हे हिम्मत थी मेरे दिल से जाते।।
बताते दर्द तो किसको बताते
छुपाते दर्द तो किससे छुपाते।।
जो दिल में रह के भी तुमने न देखा
तो दिल के जख्म फिर किसको दिखाते।।
मेरी आवाज़ को तुम सुन न पाए
भला फिर दूर से किसको बुलाते।।
मेरे क़ातिल नहीं हैं हाथ तेरे
यक़ीनन कांपते खंज़र चलाते।।
मुहब्बत का भरम रहने दो प्यारे
किसी का दिल नहीं ऐसे दुखाते।।
तुम्हे हिम्मत थी मेरे दिल से जाते।।
बताते दर्द तो किसको बताते
छुपाते दर्द तो किससे छुपाते।।
जो दिल में रह के भी तुमने न देखा
तो दिल के जख्म फिर किसको दिखाते।।
मेरी आवाज़ को तुम सुन न पाए
भला फिर दूर से किसको बुलाते।।
मेरे क़ातिल नहीं हैं हाथ तेरे
यक़ीनन कांपते खंज़र चलाते।।
मुहब्बत का भरम रहने दो प्यारे
किसी का दिल नहीं ऐसे दुखाते।।
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