कितना बिगड़े कितना सँवरे।
कब सुधरे थे हम कब सुधरे।।
चार दिनों में क्या क्या करते
आये खाये सोये गुज़रे।।
राहें भी तो थक जाती हैं
तकते तकते पसरे पसरे।।
पते ठिकाने अब होते हैं।
तब थे टोला,पूरे, मजरे।।
आने वाले कल के रिश्ते
छूटे तो शायद ही अखरे।।
एक समय जोड़े जाते थे
रिश्ते टूटे भूले बिसरे ।।
कब सुधरे थे हम कब सुधरे।।
चार दिनों में क्या क्या करते
आये खाये सोये गुज़रे।।
राहें भी तो थक जाती हैं
तकते तकते पसरे पसरे।।
पते ठिकाने अब होते हैं।
तब थे टोला,पूरे, मजरे।।
आने वाले कल के रिश्ते
छूटे तो शायद ही अखरे।।
एक समय जोड़े जाते थे
रिश्ते टूटे भूले बिसरे ।।
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