ग़ज़ल

तुम्हें बातें बनाना आ गया है।
तुम्हें क्या क्या छुपाना आ गया है।।
बहुत खुश हूँ तेरी आवारगी से
तुम्हें खाना कमाना आ गया है।।
तुम्हारे ग़म शिकायत कर रहे हैं
तुम्हें भी मुस्कुराना आ गया है।।
हमें तुम याद आये ये बहुत है
भले तुमको भुलाना आ गया है।।
कि रिश्ते अहमियत खोने लगे है
नया कैसा ज़माना आ गया है।।

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