ग़ज़ल

लोग कितने आ रहे हैं जा रहे हैं।
सौ बरस के घर बनाये जा रहे हैं।।
सब मुसाफ़िर है यहाँ सब जानते हैं
किन्तु सच से मुंह चुराये जा रहे हैं।।
प्यार के दो चार पल ही जिंदगी है
किसलिए नफरत बढाये जा रहे हैं।।

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