गजल
तुम भी कितने बदल गए हो।
पहले जैसे कम लगते हो।।
शहर क्या गए तुम तो अपनी
गांव गली भी भूल गए हो।।
कम के कम अपनी बोली में
क्षेमकुशल तो ले सकते हो।।
मैं भी कहाँ बहक जाता हूँ
तुम भी कितने पढ़े लिखे हो।।
मैं ठहरा बीते जीवन सा
तुम अब आगे निकल चुके हो।।
पर मैं राह निहार रहा हूँ
देखें कब मिलने आते हो।।
मैं यूँ ही बकता रहता हूँ
तुम काहे दिल पर लेते हो।।
पहले जैसे कम लगते हो।।
शहर क्या गए तुम तो अपनी
गांव गली भी भूल गए हो।।
कम के कम अपनी बोली में
क्षेमकुशल तो ले सकते हो।।
मैं भी कहाँ बहक जाता हूँ
तुम भी कितने पढ़े लिखे हो।।
मैं ठहरा बीते जीवन सा
तुम अब आगे निकल चुके हो।।
पर मैं राह निहार रहा हूँ
देखें कब मिलने आते हो।।
मैं यूँ ही बकता रहता हूँ
तुम काहे दिल पर लेते हो।।
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