ग़ज़ल

उसे नाकाम रहने की बड़ी कीमत मिली है।
किसी अगियार दल में अब उसे इज़्ज़त मिली है।।
उसके  बाप उसे कम चाहते थे कह रहा है
पड़ोसी की दुआ से अब उसे बरकत मिली हैं।।
अपने बाप को अपना के वो गुमनाम ही था
गधे को बाप कहने से उसे शोहरत मिली है।।
कभी रोजी औ रोटी के लिए मोहताज था जो
सियासत से उसे बेइंतेहा दौलत मिली है।।
उसी नेता से जनता को मिला क्या हम से पूछो
महज बेरोजगारी भूख और ज़िल्लत मिली है।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा