गीत

मेरी निजताओं को क्यों मंचो पर गाते हो।
फिर क्योंकर हमपर अगणित प्रतिबन्ध लगाते हो।।

हम जो एक दूसरे के नैनों में बसते हैं
हम जो एक दूसरे में ही खोये रहते हैं
इन बातों को क्यों चर्चा के विषय बनाते हो।।

आखिर हमने प्रेम किया कोई अपराध नहीं
अंतरंग बातें हैं अपनी जन संवाद नहीं
अंतरंगता को क्यों इश्तेहार बनाते हो।।

फिर अपने संबंधों की भी इक मर्यादा है
मानवीय है ईश्वरीय है कम या ज्यादा है
महफ़िल में क्यों मर्यादा विस्मृत कर जाते हो।।

हम को एक दूसरे के दिल में ही रहने दो
सम्बन्धों की प्रेम नदी को कलकल बहने दो
क्यों तटबन्ध तोड़कर उच्छ्रंखल हो जाते हो।।

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