ग़ज़ल
आस है या फिर आहट है।
ये कैसी अकुलाहट है।।
जाने किसकी याद लिए
गुमसुम गुमसुम चौखट है।।
तब सम्बन्ध जरूरत थे
अब तो जैसे झंझट है।।
ऐसा क्या बदलाव हुआ
रिश्तों में गरमाहट है।।
कुछ उम्मीदें जागी हैं
या मौसम की करवट है।।
अब भी आशा बाकी है
नाम इसी का जीवट है।।
ये कैसी अकुलाहट है।।
जाने किसकी याद लिए
गुमसुम गुमसुम चौखट है।।
तब सम्बन्ध जरूरत थे
अब तो जैसे झंझट है।।
ऐसा क्या बदलाव हुआ
रिश्तों में गरमाहट है।।
कुछ उम्मीदें जागी हैं
या मौसम की करवट है।।
अब भी आशा बाकी है
नाम इसी का जीवट है।।
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