ग़ज़ल
मेरे महबूब हो मेरा भरम है।
भला नाचीज़ पे कितना करम है।।
इसे तर्के-वफ़ा आती नहीं है
हमें मंजूर पत्थर का सनम है।।
सितम ढाओ सताओ जान ले लो
तुम्हारी बेरुखी से फिर भी कम है।।
मुझे तुम इश्क़ की हद तक न चाहो
कि राहे इश्क़ का अंजाम ग़म है।।
यही है ज़िन्दगी भर की कमाई
जनाज़े में मेरे कितना अलम है।।
भला नाचीज़ पे कितना करम है।।
इसे तर्के-वफ़ा आती नहीं है
हमें मंजूर पत्थर का सनम है।।
सितम ढाओ सताओ जान ले लो
तुम्हारी बेरुखी से फिर भी कम है।।
मुझे तुम इश्क़ की हद तक न चाहो
कि राहे इश्क़ का अंजाम ग़म है।।
यही है ज़िन्दगी भर की कमाई
जनाज़े में मेरे कितना अलम है।।
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