गजल

क्या को क्या दिखला देते हैं।
नये दौर  के आईने हैं।।
वो ही बड़के देशभक्त हैं
आज देश जो बेच रहे हैं।।
नेता जी का बीपी कम है
मत सोचो ग़म में डूबे हैं।।
अभी चुनावों के चक्कर में
हम उनके हैं वो मेरे हैं।।
वरना उनके घर के चक्कर
हरदम जनता ही फेरे हैं।।
गिरगिट शर्मिंदा हैं क्योंकि
नेता बहुरंगी दिखते हैं ।।
उन बेचारे घड़ियालों से
बढ़कर संसद में बैठे हैं।।

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