इक अपना जग छोड़ गया फिर।
अंतस्थल तक तोड़ गया फिर ।।
राह बिचारी क्या कर पाती
राही जब मुंह मोड़ गया फिर।।
सदमों से हम सम्हले ही थे
तब तक वक्त झिंझोड़ गया फिर।।
राहत के सावन से पहले
अंदर तलक निचोड़ गया फिर ।।
कोई हाथ पकड़ने वाला
कस के बाँह मरोड़ गया फिर ।।
( A family member leave us today )
अंतस्थल तक तोड़ गया फिर ।।
राह बिचारी क्या कर पाती
राही जब मुंह मोड़ गया फिर।।
सदमों से हम सम्हले ही थे
तब तक वक्त झिंझोड़ गया फिर।।
राहत के सावन से पहले
अंदर तलक निचोड़ गया फिर ।।
कोई हाथ पकड़ने वाला
कस के बाँह मरोड़ गया फिर ।।
( A family member leave us today )
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