ग़ज़ल
तुम कुछ भी कह सकती हो।
चाहे चुप रह सकती हो ।।
माँ की खातिर हाज़िर हो
सास को भी सह सकती हो।।
धारावाहिक फैशन है
तुम इसमें बह सकती हो।।
संस्कारों के साथ चलो
नींव बिना ढह सकती है।।
अब तुम पर है चाहो तो
हाथ मेरा गह सकती हो।।
चाहे चुप रह सकती हो ।।
माँ की खातिर हाज़िर हो
सास को भी सह सकती हो।।
धारावाहिक फैशन है
तुम इसमें बह सकती हो।।
संस्कारों के साथ चलो
नींव बिना ढह सकती है।।
अब तुम पर है चाहो तो
हाथ मेरा गह सकती हो।।
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