इन दहकते हुए गालों पे ग़ज़ल बनती है।
चांदनी घेरते बालों पे ग़ज़ल बनती है।।
हर अदा आपकी है शेर मुकम्मल कोई
ऐसे ख्वाबों पे ख्यालों पे ग़ज़ल बनती है।।
पर इसे मेरी कमी कहिये या गलती कहिये
मुझसे भूखों के निवालों पे ग़ज़ल बनती है।।

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