ग़ज़ल

कविता  अब कुछ कम चलती है।
सिर्फ़ गलेबाजी चलती  है।।
भाव शून्य सी रचनाओं में
केवल तुकबन्दी मिलती है।
सस्ती और चुटकुलों वाली
कविता पर ताली मिलती है।।
फूहड़ता को प्रश्रय देने -
वालों की कवि में गिनती है।।
जो जनता की नब्ज पकड़ ले
आज उसी कवि की चलती है।।

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