पगडंडी तक तो रहे अपनेपन के भाव। पक्की सड़कों ने किए दूर हृदय से गाँव।। शीतल छाया गाँव मे थी पुरखों के पास। एसी कूलर में मिले हैं जलते एहसास।। टीवी एसी फ्रीज क्लब बंगला मोटरकार। सब साधन आराम के फिर भी वे बीमार।। किचन मॉड्यूलर में नहीं मिलते वे एहसास। कम संसाधन में सही थे जो माँ के पास।। बढ़ जाती थी जिस तरह सहज भूख औ प्यास। फुँकनी चूल्हे के सिवा क्या था माँ के पास ।। सुरेश साहनी, कानपुर
Posts
Showing posts from March, 2024
- Get link
- X
- Other Apps
लिखिए पर कुछ मानी भी हो। पढ़ने में आसानी भी हो।। मक़्ता भी हो मतला भी हो बेहतर ऊला सानी भी हो।। शेर बहर से बाहर ना हों उनमें एक रवानी भी हो।। महफ़िल भीड़ न शोर शराबा खलवत हो वीरानी भी हो।। पा लेना ही इश्क़ नहीं है उल्फ़त में क़ुरबानी भी हो।। थोड़ी सी हो ख़्वाबखयाली और हक़ीक़तख़्वानी भी हो।। ताब भले हो रुख पर कितना पर आंखों में पानी भी हो।। सुरेश साहनी, कानपुर
- Get link
- X
- Other Apps
उम्र ने आज़मा लिया मुझको। वक़्त ने भी सता लिया मुझको।। ज़िन्दगी से तो बारहा रूठा दिल ने अक्सर मना लिया मुझको।। मयकदे में गया था मय पीने मयकदे ने ही खा लिया मुझको।। और तुमने भी कब सुना दिल से सिर्फ़ जी भर सुना लिया मुझको।। लाश से अपनी दब रहा था मैं पर कज़ा ने उठा लिया मुझको।। मुझसे शायद ख़फ़ा न था मौला और कैसे बुला लिया मुझको।। हुस्न भटका किया नज़ाकत में साहनी ने तो पा लिया मुझको।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
विप्र धेनु सुर सन्त धरा को सुख अविराम दिया।। उस जननी को नमन जगत को जिस ने राम दिया।। हुए अवतरित जिस आँचल में उसको कोटि नमन धन्य धन्य कौशल्या माई तुमको सतत नमन दिया राम को जन्म नृपति को चारों धाम दिया।। जिस माँ ने ममता के टुकड़े होने नहीं दिए राम काज हित जिसने दो दो बेटे सौंप दिये। पल दो पल हित नहीं अहर्निश आठो याम दिया।। उन्हें नीति से सकल जगत के त्रास मिटाना था कड़ी साधना से सुत को श्रीराम बनाना था यूँही नहीं था नृप ने उनको आसन वाम दिया।। मातु सरस्वति का आग्रह माँ टाल नहीं पायी जग को लगा हुई रानी से कितनी अधमाई हुई कलंकित स्वयं किन्तु रघुकुल को नाम दिया।। कभी कभी निज सुत को मायें आँख दिखाती हैं डांट डपट बालक को सच्ची राह दिखाती हैं इसी ताड़ना को ने वही किया माँ ने
- Get link
- X
- Other Apps
पंचवटी में राम बिराजे कमल नयन सुखधाम विराजे आठ प्रहर चैतन्य निरंतर जहां लखन निष्काम विराजे वीराने आबाद हुए यूं जंगल में ज्यों ग्राम विराजे सोहे सीय संग रघुवर ज्यों साथ कोटि रति काम विराजे सहज लब्ध है चहुं दिसि मंगल जहां राम का नाम विराजे कण कण तीरथ हुआ प्रतिष्ठित जब तीरथ में धाम बिराजे सुरेश साहनी कानपुर
- Get link
- X
- Other Apps
सूर सूर हैं चन्दर तुलसी। भान ज्ञान रत्नाकर तुलसी।। राम नाम को ओढ़ लपेटे राम नाम की चादर तुलसी।। रोम रोम तन मन अन्तस् तक भरी नाम की गागर तुलसी।। राम ग्रन्थ अवतार हुआ जब हुलसी माँ सुत पाकर तुलसी।। हुए राम घर घर स्थापित सदा प्रतिष्ठित घर घर तुलसी।। तुलसी जैसे पूजी जाती पाते वैसा आदर तुलसी।। हे कवि कुल सिरमौर गुसाईं कर लो अपना चाकर तुलसी।। सुरेश साहनी, कानपुर
- Get link
- X
- Other Apps
धम्म एहसास को हम भूल गए हैं शायद अपने हर खास को हम भूल गए हैं शायद आज बच्चों को नहीं याद हैं सम्राट अशोक अपने इतिहास को हम भूल गए हैं शायद।। वह सम्राट अशोक हैं मानवता की शान।। जिनके शासन में रहा तिगुना हिंदुस्तान।। दक्षिण में मैसूर तक उत्तर सिंचुवान। पूरब में वर्मा तलक पश्चिम में तेहरान।। एक तिहाई विश्व तक गूंजा जिसका नाम। स्वयं बुद्ध अवतार को सौ सौ बार प्रणाम।। जिनके शासन में रहा कोई रोग न शोक। इसीलिए तो देवप्रिय घोषित हुए अशोक।।
- Get link
- X
- Other Apps
हुस्न माया है जिस्म फानी है। फिर गृहस्थी का क्या मआनी है।। मौत माना कि सबको आनी है। जीस्त क्या सच में बेमआनी है।। फिर फ़साने किसे सुनाते हो जीस्त के बाद क्या कहानी है।। क्या करेंगे बहिश्त में पीकर हर खुशी जब यहीं मनानी है।। हूर, जन्नत,शराब की नहरें शेख़ कुछ तो ग़लत बयानी है।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
रउरे बिना लागे नहीं मनवा हो रामा आवS ना सजनवा। सूना लागे सगरो भवनवा हो रामा आवS ना सजनवा।। नीक नाही लागे बाबा अंगना दुवरवा लोरवा में रुके नाही पावेला कजरवा कईसे कईसे कटलीं फगुनवा हो रामा आवS ना सजनवा।। हमरा के छोड़ी सइयाँ भइलें कलकतिया केसे कहीं चढ़ली उमिर के साँसतिया टूटि जाला चोली के बन्धनवा हो रामा आवS ना सजनवा।। रउरे बिना लागे नहीं मनवा हो रामा आवS ना सजनवा। चैती गीत - सुरेश साहनी
- Get link
- X
- Other Apps
जग नदिया के इस पार रहो। बेहतर है अपने द्वार रहो।। या अपमानों का विष पीकर शिव बनने को तैयार रहो।। छुप कर काटेंगे अश्वसेन तुम लाख परीक्षित बने रहो हैं जन्म जन्म के वे अशिष्ट तुम बेशक़ शिक्षित बने रहो या फणिधर भोले बन इनकी क्षण क्षण सुनते फुफकार रहो------ फिर अन्य किसी की महफ़िल में अवमानित हो क्यों रोते हो फिर तिरस्कार या मान मिले विचलित प्रमुदित क्यो होते हो इससे बेहतर है अपने घर ही रहो भले बेकार रहो------ साहनी सुरेश कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
अगर सचमुच वतन की फ़िक़्र होती। तो क्या फिर जानो-तन की फ़िक़्र होती।। उसे तर्ज़े कहन की फ़िक़्र होती। अगर उसमें सुखन की फ़िक़्र होती।। अगर हम लाश होते तो हमें भी नए इक पैरहन की फ़िक़्र होती ।। हमारा पासवां सैयाद ही है उसे वरना चमन की फ़िक़्र होती।। अगर दीवारों-दर पहचानते तो हमें भी अन्जुमन की फ़िक़्र होती।। अगर होता अदूँ में फ़िक़्र का फन यक़ीनन उसको फन की फ़िक़्र होती।। अदब आता तो बेशक़ साहनी को ज़माने के चलन की फ़िक़्र होती।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
तुम्हें कितने बहाने आ गये हैं। जुबाँ पर सौ फ़साने आ गये हैं ।। के लहजे में बदल से लग रहा है कहानी में फलाने आ गये हैं।। कभी इनसे कभी उनसे मुहब्बत ख़ुदारा क्या ज़माने आ गये हैं।। मुहब्बत क्या इसे इक रस्म कहिये रवादारी निभाने आ गये हैं।। क़यामत हुस्न और क़ातिल अदायें कोई मक़तल में याने आ गये हैं।। सुरेश साहनी
- Get link
- X
- Other Apps
दिल लगाने के लिए तेरी गली आया था। ज़ख़्म खाने के लिए तेरी गली आया था।। जां लुटाने के लिए तेरी गली आया था। तुझको पाने के लिए तेरी गली आया था।। मैं तो आया था तेरा हाथ मुझे मिल जाये कब ख़ज़ाने के लिए तेरी गली आया था।। दिल से चाहो तो ख़ुदाई भी मदद करती है ये बताने के लिए तेरी गली आया था ।। तुझसे मतलब है फ़क़त तेरी रज़ा से निस्बत कब ज़माने के लिए तेरी गली आया था।। तू अगर रूठ भी जाता तो मुनासिब होता मैं मनाने के लिए तेरी गली आया था।। मैं किसी और के कहने में भला क्या आता दिल दीवाने के लिए तेरी गली आया था।। ज़िन्दगी तूने मुझे क्यों दी ग़मों की दौलत ग़म मिटाने के लिए तेरी गली आया था।। साहनी मयकदे जाता तो सम्हल जाता पर डगमगाने के लिए तेरी गली आया था।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
कौन किससे कहे बेवफा कौन है कह रहे हैं सभी पर सफा कौन है आज भी तू ही तू है मेरी ज़ीस्त में पर नज़र में तेरी दूसरा कौन है जिसने तुमसे कहा हम बुरे हैं तो हैं पर पता तो चले वो भला कौन है कौन है हम भी देखें बराबर मेरे यां मुक़ाबिल मेरे आईना कौन है सरबुलन्दी को लेकर परेशान क्यों सब हैं बौने तो कद नापता कौन है पास मेरे मुहब्बत की तलवार है आज मुझसे बड़ा सिरफिरा कौन है।। सुरेशसाहनी
- Get link
- X
- Other Apps
रात बदली रही चाँद करता भी क्या। मन मचलता रहा और करता भी क्या।। रात ढलती रही वस्ल टलता रहा बस फिसलता रहा वक्त करता भी क्या।। मुन्तज़िर दिल के एहसास को क्या कहें लुत्फ बढ़ता रहा हैफ़ करता भी क्या।। हिज्र की गर्मियां जां जलाती रही ज़िस्म जलता रहा हाय करता भी क्या।। फिर सुबह हो गयी चाँद भी छुप गया यूँ तड़पता रहा इश्क़ करता भी क्या।। साहनी
- Get link
- X
- Other Apps
बेशक हमको ही सब करना चहिए था। मर तो रहे हैं कितना मरना चहिए था।। मौला से , शैतां से रहती दुनिया से क्या सबसे हमको ही डरना चहिए था।। चढ़ कर आदमजाद क़मर तक जा पहुंचा रब को भी इक रोज उतरना चहिए था।। मालिक तेरी भी कुछ जिम्मेदारी थी क्या ख़ाली इंसान सुधरना चहिए था।। आसमान वाले हम जिसमें जीते हैं इस दोजख से तुझे गुजरना चहिए था।। सुरेश साहनी कानपुर
- Get link
- X
- Other Apps
इश्क़ को सिलसिला मिले तब तो। हुस्न से भी रजा मिले तब तो।। दर्दे-दिल की दवा मिले तब तो। उस पे उनकी दुआ मिले तब तो।। माँगने से मिली तो क्या मतलब दिल से दादे-वफ़ा मिले तब तो।। दिल को तस्लीम है क़यामत भी वो अभी उड़ के आ मिले तब तो।। कैसे माने कि आप दिल मे हैं अपने दिल का पता मिले तब तो।। शेर क्या हम नई ग़ज़ल कह दें पर नया मजमुआ मिले तब तो।। साहनी भी पनाह ले लेगा आपका आसरा मिले तब तो।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
कौन अब इंसान होना चाहता है। आदमी भगवान होना चाहता है।। सब्र की तालीम अपने पास रखिये साबरी सुल्तान होना चाहता है।। आ चुके सब ज़ेरोबम इस ज़िन्दगी के अब सफ़र आसान होना चाहता है।। भक्ति वाले छन्द रसमय हों कहाँ से क्या कोई रसखान होना चाहता है।। हुस्न की नादानियाँ तस्लीम करके इश्क़ भी नादान होना चाहता है।। बेशऊर आने लगे हैं जब से मयकश मयकदा वीरान होना चाहता है।। क्यों फ़क़ीरी ढो रहे हो साहनी जब हर कोई धनवान होना चाहता है।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
वसुधैव कुटुम्बकम।सुनने में कितना अच्छा लगता है।किंतु जब इस सूक्तवाक्य के मानने वाले लोग ब्राम्हण ,क्षत्रिय, वैश्य शुद्र अथवा अन्यान्य जातियों के समागम करते दिखाई पड़ते हैं तो आत्मिक कष्ट भी होता है।यह दायरा यहीं छोटा नहीं होता।जातियों में भी उपजातियों के सम्मेलन आहूत किये जाते हैं। और हर सम्मेलन की एक ही भाव कि उस सम्मेलन में आहूत जाती/उपजाति का अन्य सबल जातियों या सरकारों ने अब तक शोषण किया है । अब सम्बंधित सम्मेलन के आयोजक ही उन्हें उनके अधिकार दिलाएंगे।या अधिकार दिलवाने के संकल्प लेते हैं, आदि आदि। फिर उनमें से कुछ जाति/उपजाति के नाम पर राजनैतिक दल भी बना कर स्वयंभू राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बन जाते हैं। लेकिन संकीर्णता तो संकीर्णता है।इस भाव से ग्रसित व्यक्ति या समाज अपने समाज और परिवार के प्रति भी उदार अथवा व्यापक दृष्टिकोण नही रखता। अभी कुछ दिन पहले मेरे वृहद परिवार के सदस्य किसी बड़े महानगर में मिले। किसी मित्र से बातचीत के क्रम में मैंने बताया कि वह मेरे अनुज हैं।मेरे चाचा जी के सुपुत्र हैं। पर उन्होंने मेरे व्यापक दृष्टिकोण पर वहीं पानी फेर दिया जब उन्होंने मि...
- Get link
- X
- Other Apps
ऐसा लगता है कि आने वाले समय मे सरकार नागरिकों के लिए विभिन्न आर्थिक और सामाजिक स्तर के ब्लॉक या वर्ग बनाने की कोशिश में हैं। आर्थिक असमानताओं की इस अवस्था मे निम्न श्रेणी के नागरिक को लगभग सभी मूलभूत आवश्यकताओं के लिये टैक्स देना आवश्यक होगा और इस व्यवस्था में उसे किसी भी प्रकार की रियायत नहीं मिलेगी। और अति उच्च आय वर्ग के लोगों को सभी तरह की सब्सिडीज , रियायतें ,ऋण सुविधाएँ और दोहरी तेहरी नागरिकता या मल्टीकन्ट्री सिटिजनशिप भी उपलब्ध रहेंगी। और सबसे बड़ी बात उच्चस्तरीय प्रशासनिक सेवाओं और समितियों में इनको कोलोजियम और लेटरल इंट्री भी मिला करेगी। यानी बढ़ते आर्थिक असमानता के कारण देश के 90प्रतिशत नागरिक आर्थिक बाड़ों या उन अदृश्य नाकाबंदी के शिकार होंगे ,जिनमें उसके मौलिक अधिकार नहीं के बराबर रह जाएंगे। सबसे बड़ी बात ऐसी व्यवस्था किसी मोनार्की से भी खतरनाक हो सकती है।क्योंकि इसमें सबसे पहले टॉर्च बीयरर्स,अव्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाने वाले , फिर निष्पक्ष पत्रकार फिर विपक्ष की आवाज को दबाया जाता है। और जब विपक्ष समाप्त हो जाये तो इकनोमिक ब्लॉक के नियम सख्...
- Get link
- X
- Other Apps
मयकशी में हिसाब क्या रखते। क्या बचाते शराब क्या रखते।। हुस्न ही बेनकाब आया था हम भी आशिक थे ताब क्या रखते।। क्या शबे-वस्ल रोज आती है तिशनालब इज़्तराब क्या रखते।। हम तो ख़ुद चैन से न सो पाये उनकी पलकों पे ख़्वाब क्या रखते।। गुल नहीं है कोइ भी उस जैसा नाम उस का गुलाब क्या रखते।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
कैसी प्रीत निभाई तुमने। हर सूं की रुसवाई तुमने।। मनमन्दिर की पावनता को कितनी ठेस लगाई तुमने।। दिल के सनमकदे में गोया महफ़िल तक लगवाई तुमने।। राधे तुम ही रोक न् पाए कुछ तो करी ढिलाई तुमने।। ख्वाबों में जमुना तट आकर ब्रज की याद दिलाई तुमने।। अपना ही मंदिर तोड़ा है धोखे में हरजाई तुमने।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
मैं भी क़िरदार था कहानी में। वो मेरा प्यार था कहानी में।। उसने दिल मे उसे जगह दे दी क्या वो हक़दार था कहानी में।। सिर्फ़ सच बोलने की आदत से मैं गुनहगार था कहानी में।। छोड़ना साथ यकबयक उसका इक वही यार था कहानी में।। वो मिलेगा कभी तो पूछूँगा क्या ये दरकार था कहानी में।। उसने मुझको ही कर दिया खारिज़ क्या मैं दीवार था कहानी में।। साहनी फिर कहाँ उबर पाया ग़म का अम्बार था कहानी में।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
अमां तुम किसको ताना दे रहे हो। किसे जाकर उलहना दे रहे हो।। गदा को आस्ताना दे रहे हो। फकीरों को ठिकाना दे रहे हो।। कोई औक़ाफ़ है मेरी कमाई जताते हो ख़ज़ाना दे रहे हो।। अमां सरकार तुम मालिक नहीं हो कि अपने घर से खाना दे रहे हो।। न बोलो तुम चलाते हो ख़ुदाई किसे तुम आबोदाना दे रहे हो।। ख़ुदा भी क्यों रहे बूढ़े हृदय में अब उसको घर पुराना दे रहे हो।। ख़ुदा बेघर कहाँ है साहनी जी ये किसको आशियाना दे रहे हो।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
साला बिना ससुराल कहाँ और साली बिना न हँसी न ठिठोली साली की मीठी सी बोली के आगे घरैतिन लागे है नीम निम्बोली साला बिना पकवान सुहाये ना साली बगैर सुहाए न होली आई गए ससुराल के लोग तो सोहे कहाँ होरियारों की टोली।। जैसे छछूंदर आवत जाति है तैसे ही वे छुछुवाय रहे हैं टेसू गुलाल अबीर जुटाने को सांझ से ही अकुलाय रहे हैं होली पे साली के आने की बात से फुले नहीं वे समाय रहे हैं सर की सफेदी छुपाने के लाने वो डाई खिजाब लगाय रहे हैं।। लागत है अस पूरी की पूरी अमराई बऊराय गयी है। महुवारी मह मह महके है फुलवारी भी फुलाय गयी है।। हम घर में हैं बाहर होरी में पूज के आग धराय गयी है कैसे बचें हम उनकी सहेली आय के रंग लगाय गयी है।। होली कहाँ जो न् खाये लठा ब्रजनारी सों और भिजाये न चोली कान्हा के रंग रँगी चुनरी अब दूसरो रंग अनंग न डारो निर्गुण ज्ञान की चाह नहीं गुणग्राही पे निर्गुण रंग न डारो रति काम विदेह हुए जिससे उस रास में काम प्रसंग न डारो प्रेम के रंग में अंग रँग्यो है छेड़ के रंग में भंग न डारो।। सुरेश साहनी, कानपुर
- Get link
- X
- Other Apps
मेरा किरदार मुझसे डर रहा है। कोई मुझमें अज़ीयत भर रहा है।। मेरे साये मेरे कद से बड़े हैं कोई माज़ी से रोशन कर रहा है।। मेरी यादों यहाँ से लौट जाओ कहाँ तक काफिला रहबर रहा है।। बुलाती हैं हमें भी कहकशांएँ मेरा परवाज़ हरदम सर रहा है।। मेरे हाथों में मरहम है ,शिफ़ा भी तुम्हारे हाथ मे नश्तर रहा है।। ज़फा के पल फ़क़त दो चार होंगे मुहब्बत से सबब अक्सर रहा है।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
हमारे प्यार की पहली घड़ी को याद करना। मेरी चाहत मेरी दीवानगी को याद करना।। कहीं रहना मेरी इतनी दुआ है कभी ये ना समझना दूरियां हैं अकेलापन तुम्हे होने न पाये तुम्हारे साथ मेरी दास्ताँ है कभी तुमको लगे मैं ही गलत था तुम सही हो तो निज आँखों से बहती पावनी को याद करना।। तुम्हे चाहा चलो मेरी खता थी मेरी तकदीर ही मुझसे खफ़ा थी तुम्ही बढ़ कर के हमको थाम लेते तुम्हारे पांव में कब बेड़ियाँ थी कभी राहों में जब तुम धूप से होना परेशां हमारे प्यार की मधुयामिनी को याद करना।। कहाँ जाओगे इस दिल से निकलकर हमारा साथ हैं क्या इस जनम भर कहीं भी यदि तुम्हे ठोकर लगे तो बढ़ कर थाम लेंगे हम वहीं पर भटकना मत न घबराना कभी मंजिल से पहले किसी भी मोड़ पर अनुगामिनी को याद करना।। जहाँ राधा वहीँ पर श्याम होंगे जहाँ सीता मिलेंगी राम होंगे अगर आगाज़ दिल से हो गया है यकीनन खुशनुमा अंजाम होंगे जो फूटी थी कभी समवेत स्वर में रासवन में वो बन्शी और उसकी रागिनी को याद करना।। सुरेश साहनी,कानपुर
- Get link
- X
- Other Apps
तुम सखी बनकर मिलो तो तुम सहज होकर मिलो तो हर अहम प्रिय दूर रख कर स्वत्व को खोकर मिलो तो...... चार दिन की ज़िंदगी मे हमने अवगुण्ठन न खोले चाह कर मैं कह न् पाया संकुचनवश तुम न बोले द्वार मनमंदिर के खोलो बन के सुख आगर मिलो तो..... क्या है राधा कृष्ण क्या है रास क्या है जानती हो प्रेम क्या है योग क्या है सच कहो पहचानती हो तुम मिलो तो गांव का ग्वाला बने नागर मिलो तो...... उम्र के इस मोड़ पर भी तुम नदी के उस किनारे आज मौका है बुलाते प्रेम की गंगा के धारे फागुनी संदर्भ लेकर आज इस तट पर मिलो तो........ सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
- Get link
- X
- Other Apps
ऋग्वेद में दो पक्षियों की कथा है। सुपर्ण पक्षी। दोनों एक ही डाल पर बैठे हैं। एक अमृत फल खाता है। दूसरा उसे फल खाते देखता है और प्रसन्न होता है। उसे लगता है कि वह ख़ुद फल खा रहा है। जितनी तृप्ति पहले पक्षी को फल खाने से मिल रही है, उतनी ही तृप्ति दूसरे को उसे फल खाते देखने से मिल रही है। दोनों के पास ही खाने की तृप्ति है। खाने पर भी खाने की तृप्ति और देखने पर भी खाने की तृप्ति। इसे ‘द्वा सुपर्णा सयुजा सखायौ’ कहा गया है। साभार-गीत चतुर्वेदी