सच का इज़हार कोई क्यों न करे।
मान मनुहार कोई क्यों न करे।।
आप में बात ही कुछ ऐसी है
आपसे प्यार कोई क्यों न करे।।
प्यार चोरी नहीं गुनाह नहीं
सर-ए-बाज़ार कोई क्यों न करे।।
इतनी कातिल हैं आप की नजरें
फिर गिरफ्तार कोई क्यों न करे।।
आप मेरे हैं आप के हम है
ये भी स्वीकार कोई क्यों न करे।।
मान मनुहार कोई क्यों न करे।।
आप में बात ही कुछ ऐसी है
आपसे प्यार कोई क्यों न करे।।
प्यार चोरी नहीं गुनाह नहीं
सर-ए-बाज़ार कोई क्यों न करे।।
इतनी कातिल हैं आप की नजरें
फिर गिरफ्तार कोई क्यों न करे।।
आप मेरे हैं आप के हम है
ये भी स्वीकार कोई क्यों न करे।।
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